Nationalization of Banks: भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण इतिहास

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Nationalization of Banks: भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण देश के आर्थिक और बैंकिंग इतिहास में एक निर्णायक क्षण को प्रस्तुत करता है। इस प्रक्रिया में बैंकों के स्वामित्व को निजी संस्थाओं से सरकार को हस्तांतरित करना शामिल था। बैंकों को राष्ट्रीयकरण के पीछे प्राथमिक उद्देश्य बैंक क्रेडिट का व्यापक प्रसार सुनिश्चित करना, वित्तीय संसाधनों के नियंत्रण में एकाधिकार को समाप्त करना, और बैंकिंग क्षेत्र को समाजवादी योजना और विकास के लक्ष्यों के साथ संरेखित करना था। इसका उद्देश्य ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों की बैंकिंग आवश्यकताओं की सेवा करना, समावेशी वित्तीय विकास को बढ़ावा देना, और सरकार द्वारा प्राथमिकता के रूप में माने गए क्षेत्रों को पर्याप्त क्रेडिट प्रवाह सुनिश्चित करना था।

Nationalization of Banks

बैंकों का राष्ट्रीयकरण (Nationalization of Banks Meaning in hindi)

बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सरकार निजी क्षेत्र के बैंकों को अपने अधीन ले लेती है और उनका संचालन, नियंत्रण और स्वामित्व राष्ट्रीय सरकार के हाथों में आ जाता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से, सरकार बैंकिंग क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेती है और इसका उपयोग राष्ट्रीय आर्थिक नीतियों और सामाजिक उद्देश्यों को प्रोत्साहित करने के लिए करती है।

बैंकों का राष्ट्रीयकरण आमतौर पर उन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाता है जैसे कि आर्थिक समानता, बैंकिंग सेवाओं का व्यापक विस्तार, ग्रामीण और अविकसित क्षेत्रों तक बैंकिंग सुविधाओं की पहुंच बढ़ाना, और आर्थिक विकास को गति देना। इसके अलावा, यह वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने, भ्रष्टाचार को कम करने और बैंकों के द्वारा आर्थिक शक्ति के असमान वितरण को रोकने का एक माध्यम भी हो सकता है।

भारत में, बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 में पहली बार किया गया था जब इंदिरा गांधी की सरकार ने 14 प्रमुख निजी बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया था। इसका उद्देश्य बैंकिंग सुविधाओं को अधिक लोगों तक पहुंचाना, आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना, और समाज के विभिन्न वर्गों, विशेषकर गरीबों और वंचितों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करना था।

Nationalization of Banks

राष्ट्रीयकृत बैंकों की सूची (Nationalization of banks list)

भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण दो चरणों में किया गया था। पहला चरण 19 जुलाई, 1969 को हुआ, जब इंदिरा गांधी की सरकार ने 14 प्रमुख निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। दूसरा चरण 15 अप्रैल, 1980 को हुआ, जब छह और निजी बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया गया। नीचे उन बैंकों की सूची दी गई है जिनका राष्ट्रीयकरण किया गया था:

1969 में राष्ट्रीयकृत बैंकों की सूची:

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को छोड़कर (जिसे पहले ही 1955 में राष्ट्रीयकृत किया जा चुका था), निम्नलिखित 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था:

  • बैंक ऑफ बड़ौदा
  • बैंक ऑफ इंडिया
  • बैंक ऑफ महाराष्ट्र
  • केनरा बैंक
  • सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
  • देना बैंक
  • इंडियन बैंक
  • इंडियन ओवरसीज बैंक
  • पंजाब नेशनल बैंक
  • सिंडिकेट बैंक
  • यूको बैंक
  • यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
  • यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया
  • विजया बैंक
  • 1980 में राष्ट्रीयकृत बैंकों की सूची:
  • आंध्रा बैंक
  • कॉर्पोरेशन बैंक
  • न्यू बैंक ऑफ इंडिया (बाद में पंजाब नेशनल बैंक में विलीन)
  • ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स
  • पंजाब एंड सिंध बैंक

विजया बैंक (ध्यान दें कि विजया बैंक का राष्ट्रीयकरण 1969 की सूची में भी शामिल है, जो एक त्रुटि हो सकती है, वास्तव में यह 1980 में राष्ट्रीयकृत हुआ था)

इन राष्ट्रीयकरण कदमों का उद्देश्य बैंकिंग सेवाओं को अधिक समावेशी बनाना और देश के आर्थिक विकास में इनकी भूमिका को मजबूत करना था।

भारत में बैंकों का पहला चरण का राष्ट्रीयकरण (First Phase of Nationalization of Bank in India (1969)

1969 में भारत में बैंकों का पहला चरण का राष्ट्रीयकरण एक महत्वपूर्ण आर्थिक नीति थी, जिसे इंदिरा गांधी की सरकार ने लागू किया था। 19 जुलाई 1969 को, भारत सरकार ने 14 प्रमुख निजी बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया, जिससे इन बैंकों का स्वामित्व और नियंत्रण भारत सरकार के हाथों में आ गया। इस कदम का मुख्य उद्देश्य था देश के आर्थिक विकास को गति देना, बैंकिंग सेवाओं को व्यापक बनाना, और समाज के निम्न और मध्यम वर्ग के लोगों तक वित्तीय सेवाएँ पहुँचाना।

1969 में राष्ट्रीयकृत बैंकों की सूची:

  • बैंक ऑफ बड़ौदा
  • बैंक ऑफ इंडिया
  • बैंक ऑफ महाराष्ट्र
  • केनरा बैंक
  • सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
  • देना बैंक
  • इंडियन बैंक
  • इंडियन ओवरसीज बैंक
  • पंजाब नेशनल बैंक
  • सिंडिकेट बैंक
  • यूको बैंक
  • यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
  • यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया
  • विजया बैंक

इस राष्ट्रीयकरण के परिणामस्वरूप, बैंकिंग सेवाएँ देश के दूर-दराज के कोनों तक पहुंचीं, जिससे ग्रामीण आबादी को भी बैंकिंग सुविधाओं का लाभ मिला। इसने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया और छोटे उद्यमियों, किसानों, और आम आदमी को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मदद की। यह भारत में वित्तीय सेवाओं के विस्तार और गहराई के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ।

राष्ट्रीयकरण का दूसरा चरण (The Second Phase of Nationalization 1980) 

भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का दूसरा चरण 15 अप्रैल 1980 को हुआ, जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। यह कदम लगभग एक दशक के बाद आया, जब पहले चरण में 14 प्रमुख निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 में किया गया था। दूसरे चरण में, सरकार ने छह और बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया, जिससे इन बैंकों की कुल संख्या 20 हो गई।

1980 में राष्ट्रीयकृत बैंकों की सूची:

  • आंध्रा बैंक
  • कॉर्पोरेशन बैंक
  • न्यू बैंक ऑफ इंडिया (बाद में पंजाब नेशनल बैंक में विलीन)
  • ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स
  • पंजाब एंड सिंध बैंक
  • विजया बैंक

इस दूसरे चरण के राष्ट्रीयकरण का मुख्य उद्देश्य भी पहले चरण के समान था - बैंकिंग सेवाओं को और अधिक विस्तारित करना, वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना, और देश के आर्थिक विकास में बैंकिंग सेक्टर की भूमिका को मजबूत करना। इस कदम से भारतीय बैंकिंग प्रणाली में सरकारी हिस्सेदारी बढ़ी और देशभर में बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार हुआ।

भारतीय स्टेट बैंक का राष्ट्रीयकरण (Nationalization of State Bank of India)

भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का राष्ट्रीयकरण 1 जुलाई 1955 को हुआ था। इससे पहले, इसे इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाता था, जो तीन प्रमुख बैंकों - बैंक ऑफ बंगाल, बैंक ऑफ बॉम्बे, और बैंक ऑफ मद्रास के विलय से 1921 में बना था। भारत सरकार ने इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1955 के जरिए इस बैंक को राष्ट्रीयकृत किया और इसका नाम बदलकर भारतीय स्टेट बैंक कर दिया।

राष्ट्रीयकरण का मुख्य उद्देश्य था बैंकिंग सेवाओं को और अधिक व्यापक बनाना और विशेष रूप से ग्रामीण आबादी को वित्तीय सेवाएं प्रदान करना। SBI का राष्ट्रीयकरण भारतीय बैंकिंग सेक्टर में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, जिसने सरकार को बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद की।

SBI के राष्ट्रीयकरण के बाद, यह भारत में सबसे बड़े और सबसे भरोसेमंद बैंकों में से एक बन गया है, जिसकी शाखाएँ देश भर में फैली हुई हैं और विश्वभर में भी इसकी मौजूदगी है। यह बैंक विभिन्न प्रकार की बैंकिंग सेवाएं प्रदान करता है, जैसे कि खाता खोलना, ऋण, बचत योजनाएं, निवेश सेवाएं, और बहुत कुछ, जिससे यह देश के वित्तीय तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।

Nationalization of Banks in India in Banking Law

भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण बैंकिंग कानून के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह प्रक्रिया 1969 और 1980 में दो चरणों में हुई, जब भारत सरकार ने मुख्य रूप से वित्तीय समावेशन और समाजवादी आर्थिक नीतियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 14 और फिर 6 और निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।

भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण, भारतीय बैंकिंग और वित्त के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसे मुख्य रूप से दो प्रमुख विधायी अधिनियमों के माध्यम से किया गया था। ये अधिनियम मुख्य बैंकों के स्वामित्व को निजी संस्थाओं से सरकार को हस्तांतरित करने के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करते हैं। नीचे राष्ट्रीयकरण प्रक्रिया में शामिल मुख्य अधिनियमों और प्रावधानों का विवरण दिया गया है:

बैंकिंग कंपनियां (अधिग्रहण और हस्तांतरण के उपक्रम) अधिनियम, 1970

इस अधिनियम ने 19 जुलाई, 1969 को 14 प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों के पहले चरण के राष्ट्रीयकरण को चिह्नित किया। मुख्य प्रावधान इस प्रकार थे:

  • निर्दिष्ट बैंकों का स्वामित्व केंद्र सरकार को हस्तांतरित किया गया।
  • राष्ट्रीयकृत बैंकों के पूर्व मालिकों को मुआवजा देने की विधि निर्धारित की गई।
  • प्रत्येक राष्ट्रीयकृत बैंक के लिए निदेशक मंडल का गठन किया गया, जिससे सरकार का उनके संचालन पर नियंत्रण सुनिश्चित हुआ।
  • राष्ट्रीय प्राथमिकताओं, जैसे कृषि, लघु उद्योग और निर्यात के अनुरूप राष्ट्रीयकृत बैंकों के संचालन पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए।

बैंकिंग कंपनियां (अधिग्रहण और हस्तांतरण के उपक्रम) अधिनियम, 1980

यह अधिनियम 15 अप्रैल, 1980 को सरकारी नियंत्रण में छह और बैंकों को लाने के दूसरे चरण की शुरुआत करता है। 1970 के अधिनियम के समान, इसमें शामिल प्रावधान थे:

  • सरकारी स्वामित्व को छह अतिरिक्त बैंकों तक विस्तारित किया गया, जिससे राष्ट्रीयकरण प्रक्रिया की पहुंच और प्रभाव बढ़ा।
  • नवीनतम राष्ट्रीयकृत बैंकों के मालिकों को मुआवजा देने की विस्तृत विधियां निर्दिष्ट की गईं।
  • सरकार द्वारा नियुक्त बोर्डों के माध्यम से प्रबंधन और नियंत्रण की संरचना को दोहराया गया, जिससे बैंकिंग क्षेत्र पर सरकारी निगरानी और अधिक मजबूत हुई।

ये विधायी उपाय भारतीय बैंकिंग परिदृश्य को बदलने में महत्वपूर्ण थे, इसे राष्ट्र के आर्थिक उद्देश्यों के अधिक निकट लाने और विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में वित्तीय संसाधनों के अधिक समान वितरण को सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार, बैंकों का राष्ट्रीयकरण भारत के आर्थिक इतिहास में एक निर्णायक क्षण के रूप में स्थापित है, सामाजिक और आर्थिक विकास की एक व्यापक प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

R.C. Cooper vs. Union of India (1970)

R.C. Cooper vs. Union of India (1970) का मामला, जिसे बैंक राष्ट्रीयकरण केस के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय न्यायिक इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण मामलों में से एक है। इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने 1969 में भारत सरकार द्वारा किए गए बैंकों के पहले चरण के राष्ट्रीयकरण को चुनौती दी गई थी।

इस मामले की शुरुआत तब हुई जब रामनाथ कूपर, जो कि बैंक ऑफ इंडिया के एक शेयरधारक थे, ने भारत सरकार के बैंकिंग कंपनीज़ (अधिग्रहण और स्थानांतरण संपत्ति) अधिनियम, 1969 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इस अधिनियम के तहत, सरकार ने 14 प्रमुख निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था।

कूपर ने तर्क दिया कि यह अधिनियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19(1)(f) (संपत्ति के अधिकार पर प्रतिबंध), और अनुच्छेद 31 (संपत्ति के अधिकार को छीने जाने के खिलाफ संरक्षण) का उल्लंघन करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला देते हुए यह कहा कि राष्ट्रीयकरण अधिनियम वास्तव में उन अधिकारों का उल्लंघन करता है जो संविधान द्वारा संरक्षित हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि संपत्ति का अधिकार और समानता का अधिकार अविभाज्य हैं और सरकार को अधिग्रहण के लिए उचित मुआवजा देना चाहिए।

इस फैसले ने संपत्ति के अधिकार और संविधान के तहत व्यक्तियों के अन्य अधिकारों के बीच संबंध को मजबूत किया। R.C. Cooper vs. Union of India मामले को अक्सर "बैंक नेशनलाइजेशन केस" के रूप में संदर्भित किया जाता है और यह भारतीय न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मामला माना जाता है।

बैंकों के राष्ट्रीयकरण में इंदिरा गांधी की भूमिका 

भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण में इंदिरा गांधी की भूमिका (Indira Gandhi's Role in Bank Nationalization in India) अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इंदिरा गांधी, जो उस समय भारत की प्रधानमंत्री थीं, ने 1969 में 14 मुख्य वाणिज्यिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की, जिसे भारतीय आर्थिक और बैंकिंग इतिहास में एक क्रांतिकारी कदम माना जाता है।

इस कदम के पीछे मुख्य उद्देश्य यह था कि बैंकिंग सेवाओं को अधिक समावेशी बनाया जाए और बैंकों द्वारा ऋण वितरण के निर्णयों को सरकारी नीतियों और सामाजिक-आर्थिक विकास के लक्ष्यों के अनुरूप बनाया जाए। इंदिरा गांधी का मानना था कि निजी स्वामित्व वाले बैंक अक्सर ग्रामीण और कम आय वाले वर्गों की उपेक्षा करते हैं और मुख्यतः लाभ के लिए काम करते हैं।

राष्ट्रीयकरण के इस निर्णय ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली में व्यापक परिवर्तन लाये। इसने बैंकों को वित्तीय समावेशन की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया और ग्रामीण विकास, छोटे उद्योगों और कृषि क्षेत्र को ऋण प्रदान करने में वृद्धि की। इस प्रकार, इंदिरा गांधी के नेतृत्व में बैंकों का राष्ट्रीयकरण न केवल आर्थिक नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था बल्कि यह उनके समाजवादी आदर्शों को प्रतिबिंबित करता था, जिसमें समाज के हर वर्ग तक बैंकिंग सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करना शामिल था।

राष्ट्रीयकरण के महत्वपूर्ण कारण

भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण की आवश्यकता के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे:

वित्तीय समावेशन: राष्ट्रीयकरण का मुख्य उद्देश्य बैंकिंग सेवाओं को अधिक समावेशी बनाना था। इससे पहले, बैंक मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों और समृद्ध वर्गों पर केंद्रित थे, जिससे ग्रामीण आबादी और छोटे किसान बैंकिंग सेवाओं से वंचित रह जाते थे।

कृषि और ग्रामीण विकास को प्रोत्साहन: भारत एक कृषि प्रधान देश है, और राष्ट्रीयकरण के माध्यम से, सरकार का लक्ष्य कृषि क्षेत्र और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान करना था।

आर्थिक नियोजन के अनुरूप वित्तीय संसाधनों का वितरण: सरकार चाहती थी कि वित्तीय संसाधनों का वितरण राष्ट्रीय आर्थिक नियोजन और विकास की प्राथमिकताओं के अनुरूप हो। इससे सरकार को अर्थव्यवस्था में निवेश की दिशा निर्धारित करने में मदद मिली।

वित्तीय स्थिरता और विश्वास की स्थापना: राष्ट्रीयकरण के माध्यम से, सरकार बैंकिंग प्रणाली में अधिक स्थिरता और जनता का विश्वास बढ़ाना चाहती थी। इससे पहले, कुछ निजी बैंकों के असफल होने के कारण जनता का विश्वास कमजोर हुआ था।

आर्थिक असमानता को कम करना: बैंकों के राष्ट्रीयकरण से आर्थिक असमानता को कम करने में मदद मिली, क्योंकि इसने छोटे उद्यमियों, किसानों और छोटे व्यापारियों को भी वित्तीय सेवाओं और ऋणों तक पहुंच प्रदान की।

इन कारणों के माध्यम से, भारत सरकार ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण के जरिए आर्थिक विकास, समाजिक न्याय, और वित्तीय स्थिरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाये।

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