2024 के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत का स्थान 129वां
भारत 2024 के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में 146 देशों में से 129वें स्थान पर है। पिछले कुछ वर्षों से यह स्थान बदल नहीं पाया है और यह दिखाता है कि विभिन्न क्षेत्रों में लैंगिक अंतर को समाप्त करना अभी भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में प्रगति देखी गई है, फिर भी स्थिति में समग्र सुधार नहीं हुआ है। इस रैंकिंग में आइसलैंड ने अपनी शीर्ष स्थिति बनाए रखी है।
ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स के बारे में
2006 में शुरू हुआ ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स आर्थिक भागीदारी और अवसर, शिक्षा, स्वास्थ्य और उत्तरजीविता, और राजनीतिक सशक्तिकरण में लैंगिक समानता की जांच करता है। इंडेक्स रेटिंग्स में लैंगिक असमानता पर जोर दिया जाता है, जो 0 (कोई समानता नहीं) से 1 (पूर्ण समानता) तक होती हैं।
भारत के उप-सूचकांकों का विश्लेषण
आर्थिक भागीदारी:
भारत का स्कोर 39.8% है और यह 142वें स्थान पर है, जो कार्यबल और प्रबंधकीय रैंकों में लगातार लैंगिक अंतर को दर्शाता है, हालांकि पिछले वर्षों की तुलना में इसमें थोड़ी वृद्धि हुई है।
शैक्षिक उपलब्धि:
शिक्षा में, भारत 112वें स्थान पर है और 96.4% लैंगिक अंतर को बंद कर चुका है। यह दर्शाता है कि शैक्षिक समानता बेहतर है लेकिन वैश्विक स्तर से अभी भी कम है।
स्वास्थ्य और उत्तरजीविता:
भारत 142वें स्थान पर है और इसका स्कोर 0.951 है, जो लैंगिक स्वास्थ्य असमानताओं को स्पष्ट करता है।
राजनीतिक सशक्तिकरण:
राजनीतिक समावेशन में, भारत 65वें स्थान पर है और 25.1% लैंगिक अंतर को पाट चुका है।
क्षेत्रीय तुलना
दक्षिण एशिया में, भारत सात देशों में से पांचवें स्थान पर है, जबकि बांग्लादेश 99वें स्थान पर वैश्विक रूप से सबसे आगे है। लैंगिक समानता के मामले में भारत अपने पड़ोसी देशों की तुलना में आम तौर पर कमजोर प्रदर्शन कर रहा है। लिंग आधारित भेदभाव से विश्व की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान होता है—प्रतिवर्ष लगभग $12 ट्रिलियन तक। पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता में सुधार करने से जीडीपी वृद्धि दर में काफी वृद्धि हो सकती है। यह दर्शाता है कि आर्थिक नीति निर्धारण में लैंगिक समानता को शामिल करना कितना महत्वपूर्ण है।
समापन विचार
भारत की रैंकिंग 2024 के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में निचले 20 देशों में बनी हुई है, जो देश में लैंगिक असमानता के मुद्दों को उजागर करती है। यह आवश्यक है कि सरकार और समाज मिलकर इन असमानताओं को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाएं, ताकि देश की आधी आबादी को समान अवसर और अधिकार मिल सकें। तभी भारत अपने विकास लक्ष्यों को प्राप्त कर पाएगा और वैश्विक मंच पर मजबूत स्थान बना सकेगा।
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